...

4 views

मेरी मौलिक रचना
*मेरी मौलिक रचना - उम्मीद*

जिंदगी का सबसे
कठिन दौर की याद दिला दी
इस तालाबंदी ने।
किस तरह से समाज़ अछूत-
सछुत में बंटी रही
होगी
कैसे किसी व्यक्ति को निम्न
कुल, जाति, वंश समझ कर
अपमानित किया जाता रहा
होगा।
एक दूसरे से छूने से अपवित्र होना
कुल भ्रष्ठ हो जाना आम थी
लेकिन वह समय तो बीत गया ना
हां यह वक्त भी बीत जाएगा।
एक दूसरे के सुख- दुख में साझा हो सकेंगे
दिल खोलकर गले मिलने का आत्मीय रिवाज पुनः वापस आएगा।
मैं बेहद आशावादी इंसान हूँ
मुझे उम्मीद है यह दिन
बदलेंगे ,
यह निज़ाम बदलेगी ,
जिसमें हम आक्सीजन के लिए तरस रहे हैं।
मर रहे हैं।
कहीं कोई इंतजाम नही ।
चारो ओर मायूसी ओर भयाक्रांत वातावरण है।
यह दिन बदलेंगे
यह निज़ाम बदलेगी
यह सत्ताएं सिफर होंगी

बशर्ते आपको सतत लिखना होगा हमारे मसलें,
ऑनलाइन बात चीत जारी रखनी होगी
टेलीफोन से नियमित सम्पर्क करने होंगे ,
एक - एक व्यक्ति से बात करनी पड़ेगी उन्हें जागरूक करने पड़ेंगे।
हां यदि आप यह कर सकते हैं।
तो यकीन मानिए
यह बुरा दौर गुजर जाएगा।

हम फिर सपने बुनेंगे,
बेहतर भविष्य की।

शैलेश कुमार✍️
जिला मुंगेली छग
सम्पर्क फेसबुक Shailesh Kumar


© All Rights Reserved