मेरी मौलिक रचना
*मेरी मौलिक रचना - उम्मीद*
जिंदगी का सबसे
कठिन दौर की याद दिला दी
इस तालाबंदी ने।
किस तरह से समाज़ अछूत-
सछुत में बंटी रही
होगी
कैसे किसी व्यक्ति को निम्न
कुल, जाति, वंश समझ कर
अपमानित किया जाता रहा
होगा।
एक दूसरे से छूने से अपवित्र होना
कुल भ्रष्ठ हो जाना आम थी
लेकिन वह समय तो बीत गया ना
हां यह वक्त भी बीत जाएगा।
एक दूसरे के सुख- दुख में साझा हो सकेंगे
दिल खोलकर गले मिलने का आत्मीय रिवाज पुनः ...
जिंदगी का सबसे
कठिन दौर की याद दिला दी
इस तालाबंदी ने।
किस तरह से समाज़ अछूत-
सछुत में बंटी रही
होगी
कैसे किसी व्यक्ति को निम्न
कुल, जाति, वंश समझ कर
अपमानित किया जाता रहा
होगा।
एक दूसरे से छूने से अपवित्र होना
कुल भ्रष्ठ हो जाना आम थी
लेकिन वह समय तो बीत गया ना
हां यह वक्त भी बीत जाएगा।
एक दूसरे के सुख- दुख में साझा हो सकेंगे
दिल खोलकर गले मिलने का आत्मीय रिवाज पुनः ...