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फूल- काॅऺंटे
नयन से नयन मिले ,नयन चार होते रहते
क्या फूल के खेतों में काॅऺंटों का फसल बोते?
पलकें झुक-झुक रही है, संग-संग उठ रही है,
आईनों को क्या पता ऐसे क्यों व्यवहार होते|
एक नयन झुक रही है, लाखों उसपे उठ रही है,
अधूरा अधूरा भी व्यापार यहाँ नहीं होते||
फूल के खेतों में काॅऺंटों का फसल बोते||
अर्थी रानी बोली मुझसे मेरा वाला हश्र होगा,
गुस्ताख़ी की जो तुमने नयन से नयन मिला के||
कब्र में डोली सजेगी, रस्म पुरे होंगे सारे ,
अग्नि वहाँ भी जलेगी पर तेरे मुख को लगाने|
फूल के खेतों में यहाँ काॅऺंटों का फसल बोते||
रुढ़ि कितनों को रूलाते और कितनों को सुलाते,
परम्परा की घोल मिश्री जहर की घुट्टी पिलाते||
अग्नि की प्राकाष्ठा पे जिवन्त रखतें परम्पराए,
पर मुस्कुरा के बोल उठते बेटीयों से घर मुस्कुराए||
फूल के खेतों में काॅऺंटों का फसल बोते|
नयन से नयन मिले तो नयन चार नहीं होते |
© Pakhi Vaibhav
क्या फूल के खेतों में काॅऺंटों का फसल बोते?
पलकें झुक-झुक रही है, संग-संग उठ रही है,
आईनों को क्या पता ऐसे क्यों व्यवहार होते|
एक नयन झुक रही है, लाखों उसपे उठ रही है,
अधूरा अधूरा भी व्यापार यहाँ नहीं होते||
फूल के खेतों में काॅऺंटों का फसल बोते||
अर्थी रानी बोली मुझसे मेरा वाला हश्र होगा,
गुस्ताख़ी की जो तुमने नयन से नयन मिला के||
कब्र में डोली सजेगी, रस्म पुरे होंगे सारे ,
अग्नि वहाँ भी जलेगी पर तेरे मुख को लगाने|
फूल के खेतों में यहाँ काॅऺंटों का फसल बोते||
रुढ़ि कितनों को रूलाते और कितनों को सुलाते,
परम्परा की घोल मिश्री जहर की घुट्टी पिलाते||
अग्नि की प्राकाष्ठा पे जिवन्त रखतें परम्पराए,
पर मुस्कुरा के बोल उठते बेटीयों से घर मुस्कुराए||
फूल के खेतों में काॅऺंटों का फसल बोते|
नयन से नयन मिले तो नयन चार नहीं होते |
© Pakhi Vaibhav
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