...

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ख़ामोशी।
ख़ामोशी

ख़ामोश है अब लब मेरे,,
पर दिल में होता शोर बहुत है।
दिल की पीड़ा ना कोई समझ सकें
यूं कहने को रिश्ते चारो और हैं।

आंखों ने भी पकड़ा दामन ख़ामोशी का,,
आंसू भी अब बहते नहीं।
सुनकर दर्द मज़ाक उड़ाते हैं,,
इस लिए अब हम दर्द किसी से कहते नहीं ।


वैसे ख़ामोशी अच्छी है इस दौर में,,
खुद से खुद की मुलाकात हो जाती हैं।
तनहा तनहा से रहते थे,,
अब खुद से दिल की बात हो जाती हैं।

खामोशियों की भी आवाज हैं,,
कोई मन के कानों से अगर सुने ज़रा।
बिना बोले सब कुछ बोल देती,,,
दिल के जज़्बातों को कोई समझे ज़रा।
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