...

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एक तकिया बीच में सोता रहा दीवार सा...
रात भर जलता रहा बिस्तर मेरा अंगार सा
प्यार होकर भी नहीं था वो जरा भी प्यार सा

रूह से इक रूह का नाता न कोई बन सका
दर्द बन चुभता रहा है एक रिश्ता खार सा

धौंकनी सी कर रही थी साँस कुछ सरगोशियां
पीट मैं लोहे से लोहा बन गया लोहार सा

रात भर करवट पे करवट हम बदलते रह गए
एक तकिया बीच मे सोता रहा दीवार सा

प्यार के प्यासों को कोई आग का दरिया मिले
धूल के सहरा में बादल ले बरस बौछार सा

संजय नायक"शिल्प"
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