...

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वो लम्हे आए न दोबारा
सुकून भरे पालो की बातें करते है
बचपन की बातों को याद कर हम मुस्कुरादिया करते है
पापा के जल्दी घर आने का इन्तेज़ार करते –करते
दादी की बाहों में सो जाया करते थे
सो तो सोफे पे जाते थे
न जाने कैसे बिस्तर पे मिल जाते थे
उन लम्हो को याद करते –करते
कभी आँखे नम करते है
दादी की काहानियो और लोरी के बिन रात नही कटती थी
उन बातों को याद कर अब मुस्कुरा दिया करते है
दादू के कंधों पे सवार
पापा की शिकायत करते थे
अब उनसे ही खुदकी बाते छुपा के घूमते है
टॉफी या तितली दिख जाने पर
बहुत खुश हो जाते थे
बचपन की यादों के सहारे
हम आज भी जिया करते है
बचपन की तस्वीरों को देख
आज मेरा मन भी बेठ गया
कितना बदल गया में
ये सोच खुद पर फक्र हो गया
पर शाबाशी देने के लिए
बड़े बुजुर्ग का हाथ भी अब न रहा
अपनो को आँखों के सामने जाता देख
अंदर ही अंदर सहम गया
रोना तोह चाहता था पर
आँखों मे आँसू कैद कर गया
फिर से अपनी बाहों में
खुद ही को समेट बैठ गया;



© Dark Rose