...

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द्रष्टा
खो गये से है शब्द, जानकर ये
आधे अधूरे,चून के बटोरे है
खो गये से है शब्द, मेरे
कैसे मिथ्या ,दृष्टि की देखी
जो बदलती है,सच नहीं होती
एक खोता है, दूजा रोता है
जिंदगी है क्या, ऐसा होता है
जो भी आता है, दर्द पाता है
सामने है सच,दंभ खाता है
किस गुरुर में सो रहे हैं हम
ये कहां सच जो,खो रहे हैं हम
पन्ने पर पन्ना आते जाता है
सच नहीं है जो, दृष्टि पाता है
चून रहे हैं माया को
बिन रहे संसार,
आखरी सच है, माया का बाज़ार
मृत्यु ही तो है,जीवन का सार
मृत्यु ही तो है,जीवन का सार।


© Gitanjali Kumari