...

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मैं एक माँ हूँ
अपनी जरूरतों को कभी अहमियत नहीं देती,
अपनी ख्वाइशों को दबा लेती ,
सभी को खिलाकर खाना खाती,
क्यों? क्योंकि मैं एक माँ हूं।

गीता के जैसी पवित्र होती,
गंगा जैसी निर्मल होती,
गुलाब की तरह महकती ,
सब दुख सहकर भी हमेशा मुस्कुरा देती,
क्यों? क्योंकि में एक माँ हूँ।

भगवान का दूसरा रूप कह लाती,
पर फिर भी बड़े हो कर बच्चों के लिए बोझ बन जाती,
ये जानते हुए भी अपने बच्चों को प्यार करती,
अपने बचाए हुए रूपए बच्चो की खुशियों में लगा देती,
क्यों? क्योंकि मैं एक माँ हूं।।

अंत में यही कहूंगी कि पैसे, घर, गाड़ी सब दुबारा आ सकते पर मां नहीं आएगी , तो अपनी मां की कदर करो ताकि उन्हें अपने बलिदान पर पछतावा ना करना पड़े।।



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