मैं एक माँ हूँ
अपनी जरूरतों को कभी अहमियत नहीं देती,
अपनी ख्वाइशों को दबा लेती ,
सभी को खिलाकर खाना खाती,
क्यों? क्योंकि मैं एक माँ हूं।
गीता के जैसी पवित्र होती,
गंगा जैसी निर्मल होती,
गुलाब की तरह महकती ,
सब दुख सहकर भी हमेशा मुस्कुरा देती,
क्यों? क्योंकि में...
अपनी ख्वाइशों को दबा लेती ,
सभी को खिलाकर खाना खाती,
क्यों? क्योंकि मैं एक माँ हूं।
गीता के जैसी पवित्र होती,
गंगा जैसी निर्मल होती,
गुलाब की तरह महकती ,
सब दुख सहकर भी हमेशा मुस्कुरा देती,
क्यों? क्योंकि में...