...

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नारी की अहमियत
एक स्त्री की कमी तब अखरती है ,
जब वो चली जाती है वापस लौट कर नहीं आती।
छत पर लगे जाले व आँगन की धूल
हटाने में संकोच आता है
" तुम्हारी ये सफाई " कहने का मौका
नहीं मिल पाता !!

एक स्त्री की कमी तब अखरती है
जब कालरों की मैल जुटाने में
पसीना छूट जाता है
चूडियां साथ में नहीं खनकती
उसका "मेहनतकश" होना याद आता है !!

एक स्त्री की कमी तब अखरती है
जब घर में देर से आने पर
रोटियां ठंडी हो जाती है सब्जियों में
तुम्हारी पसंद का जायका नहीं रहता
और तुमसे यह कहते नही बनता
"मुझे ये पसंद नहीं "!!

एक स्त्री की कमी तब अखरती है
जब बच्चा रात को ज़ोर से रोता है
आप अनमने से उठ जाते हो
और यह नहीं कह पाते
"कितनी लापरवाह हो तुम"!!

एक स्त्री की कमी तब अखरती है
जब आप रात में अकेले सोते हैं
करवट बदलते रहते हैं बगल में
पर हाथ धरने पर कुछ नहीं मिलता!!

एक स्त्री की कमी तब अखरती है
जब त्यौहारों के मौसम में
नयी चीज़ों के लिए कोई नहीं लड़ता
और तुमसे ये कहते नही बनता
"और पैसे नहीं हैं "!!

एक स्त्री की कमी तब अखरती है
जब आप गम के बोझ तले दबे होते हैं ,
निपट अकेले रोते हैं ,
और आपके आंसू पोंछने वाला कोई नहीं होता।
आप किसी से कुछ नहीं कह पाते
🌹हाँ, स्त्री की कमी तब अखरती जरूर है 🌹
© ठाकुर बाई सा