मेरे शहर के लोग !
ख़ुलकर जो इस समा ने, है ज़िक्र मेरा छेड़ा;
बातें बदल रहे हैं ,
मेरे शहर के लोग !
मशरूफ़ हैं वो इतने कि नजरें टिकीं हैं मुझपर ;
फ़ुर्सत में चल रहें हैं ,
मेरे शहर के लोग !
खिड़की से उठ रहा है धुआँ जो धीमें-धीमें;
कुछ-कुछ तो जल रहें हैं,
मेरे शहर के लोग !
मख़मल की राह पर भी ठोकर बचा रहें हैं ;
अब तो संभल रहें हैं ,
मेरे शहर के लोग !
लगता है चाँद की भी, अब गिर गई है किमत;
तारों को छल रहें हैं ,
मेरे शहर के लोग !
- कोमल ' विनोद '
#wanderlust
#citylights
#flyingbirds
#LostCityBlues
© Flying Birds
बातें बदल रहे हैं ,
मेरे शहर के लोग !
मशरूफ़ हैं वो इतने कि नजरें टिकीं हैं मुझपर ;
फ़ुर्सत में चल रहें हैं ,
मेरे शहर के लोग !
खिड़की से उठ रहा है धुआँ जो धीमें-धीमें;
कुछ-कुछ तो जल रहें हैं,
मेरे शहर के लोग !
मख़मल की राह पर भी ठोकर बचा रहें हैं ;
अब तो संभल रहें हैं ,
मेरे शहर के लोग !
लगता है चाँद की भी, अब गिर गई है किमत;
तारों को छल रहें हैं ,
मेरे शहर के लोग !
- कोमल ' विनोद '
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