नज़ारा
सवेरे रोशनदान से जब धूप छटकती है
एक धूँधली सी तस्वीर उभरती है
वो क्या है उसको तो मैं नही जानता
मगर मेरी आँखो में बहुत मचलती है
सपनो को उसी ने नाराज़ किया है
मेरी परछाई को मेरे खिलाफ किया है
मेरी आँखे...
एक धूँधली सी तस्वीर उभरती है
वो क्या है उसको तो मैं नही जानता
मगर मेरी आँखो में बहुत मचलती है
सपनो को उसी ने नाराज़ किया है
मेरी परछाई को मेरे खिलाफ किया है
मेरी आँखे...