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जिंदगी हम तेरे मज़दूर
मैं मजदूर हूँ साहब,
मुझे कमाना पड़ता है,
जिंदगी चलाने के खातिर
कभी मजबूरी से तो कभी जरूरतों के लिए कामों से हाथ मिलाना पड़ता है।
आए न बाधा अपनो पर
इस बात को याद रख कमाना पड़ता है
अपनो की जिमेदारियों का बोझा उठा कर
हर रोज पसीना बहाना पड़ता है।
किसीको महल बनाना तो किसीको चलाना पड़ता है।
मजदूरी का हाथ पकड़ रोज खुदको सुबह जल्दी उठाना पड़ता है।
भूख के डर से हाथ पैर को भी हिलाना पड़ता है।
चाहे हो कितना भी दर्द बदन में
मजदूरी का सेक भी लगाना पड़ता है
कही रह न जाऊं भूखा में इस डर से रोज कमाना पड़ता है।
घर पर रहूं तो भूख से मंरु
अपनो के खातिर तो कभी खुदके खातिर
जीने के लिए हर रोज
साहब दाना भी जुटना पड़ता है।
अपनो के शौक और खुदके ख्वायिशो के खातिर
न जाने कितने खोफ से भी खुदको गुजरना पड़ता है।
जिंदगी देख तेरे खातिर
मुझे दिन को रात
रात को दिन बनाना पड़ता है।
कई जिंदगी को संवारना तो
अपनो की जिंदगी चलाना पड़ता है।
मेहनत का पसीना बहाकर
अपनो की प्यास बुझाना पड़ता है।
मैं मजदूर हूँ साहब,
मुझे कमाना पड़ता है।
© tejswii_madavi