...

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मैं क्या कहूँ
क्या मैं कहूँ इस सागर से,कि मेरे लिए कौन हो तुम
निराशा के घने जंगल में, दिल में जलता दीपक हो तुम
जिस तिनके के अनुमान हर परेशानी को पार करके….
हर बार किनारे तक पहुँच जाता हूँ मैं, मेरे लिए वो नैया हो तुम
हर परेशानी से मैं निकलता हूँ खिवैया हो तुम
ज़िंदगी की इस भागदौड़ में नसीब से मिलने वाली राहत हो तुम
कमजोरियों के दौर में, मेरे लिए नौकरी की ताकत हो
। चेहरे को देखकर मैं सब कुछ भूल जाता हूं……..
मेरे लिए प्यारी सी वो तिलिस्मी सूरत हो तुम
मेरी नजरों में बेमिसाल और बहुत हीं खूबसूरत हो तुम
जब-जब मैं रास्ता जाता हूं, तो मुझे राह दिखाओ तुम
सुनसान राह पर मेरे साथ कदम से कदम मिलाने वाले हो तुम
मेरे लिए एक हसीन सा ख्वाब हो तुम……
मुश्किलों की याद में जगमगाता आफ़ताब हो तुम
मैं एक फरेब और एक साधारण स्थिर हो तुम
एक टूटा हुआ सपना और एक मात्र हिम्मत हो तुम
छलकते हौसलों को जोड़कर फौलाद बना देने वाली हो तुम
मुझसे दूर भी पल-पल मेरे साथ रहने वाली हो
टूटती-बिखरती इस दुनिया में एक मजबूत बुनियाद हो तुम
जो हर सांस में मेरे साथ चलती है, वो सुनहरी याद हो तुम
© parth