यादें
भीगी हुई पलकों के पीछे छिपी कईं यादें सताती हैं
देख बरसते आंगन को हर बार ये आंखे नम हो जाती हैं
सुलझाते सुलझाते हर बार फिर सवालों की डोर उलझ जाती है
कहीं न कहीं आज़ भी उस शख्स की बहुत याद आती है।।
हैं बहुत खुद से शिकायते, हर बार ये मन सिसकता है,
वो बंद आंखो के भीतर,आंखो में फिर इक तस्वीर सा दिखता है।।
कुछ थी बातें अनजानी सी
कुछ थी यादें बहुत सुहानी सी
चल रही थी इक खूबसूरत कहानी सी
पर चढ़ बैठी थी, वक्त की मनमानी सी ।।
जहा इक अटूट सा विश्वास, इक अनकहा सा एहसास था
जहां समाज के गहराइयों मे, सच्चाई का मिजाज था।
क्या वो गलतफेमियों का इतना जोर था
या जिस रिश्ते पर फक्र था वो शुरू से ही कमजोर था ।।
कभी न सोचा था, की इतना समय बदल जाएगा
किसे पता था, की सुकून ही एक दिन नफरत बन जायेगा।।
यूं सोचूं गर तो समय का भी कुसूर नहीं
क्या दोष किसी का हो, जब दोनो को ही मंजूर नही।
शांति के भीतर, बैठू गर, धड़कने थम जाती है, दिल सहम जाता है
ये बहती हवाओं का झोका, कानों में सनसनाहट के साथ, कई राज़ कह जाता है ।।
©saumya
देख बरसते आंगन को हर बार ये आंखे नम हो जाती हैं
सुलझाते सुलझाते हर बार फिर सवालों की डोर उलझ जाती है
कहीं न कहीं आज़ भी उस शख्स की बहुत याद आती है।।
हैं बहुत खुद से शिकायते, हर बार ये मन सिसकता है,
वो बंद आंखो के भीतर,आंखो में फिर इक तस्वीर सा दिखता है।।
कुछ थी बातें अनजानी सी
कुछ थी यादें बहुत सुहानी सी
चल रही थी इक खूबसूरत कहानी सी
पर चढ़ बैठी थी, वक्त की मनमानी सी ।।
जहा इक अटूट सा विश्वास, इक अनकहा सा एहसास था
जहां समाज के गहराइयों मे, सच्चाई का मिजाज था।
क्या वो गलतफेमियों का इतना जोर था
या जिस रिश्ते पर फक्र था वो शुरू से ही कमजोर था ।।
कभी न सोचा था, की इतना समय बदल जाएगा
किसे पता था, की सुकून ही एक दिन नफरत बन जायेगा।।
यूं सोचूं गर तो समय का भी कुसूर नहीं
क्या दोष किसी का हो, जब दोनो को ही मंजूर नही।
शांति के भीतर, बैठू गर, धड़कने थम जाती है, दिल सहम जाता है
ये बहती हवाओं का झोका, कानों में सनसनाहट के साथ, कई राज़ कह जाता है ।।
©saumya
Related Stories