यादें
भीगी हुई पलकों के पीछे छिपी कईं यादें सताती हैं
देख बरसते आंगन को हर बार ये आंखे नम हो जाती हैं
सुलझाते सुलझाते हर बार फिर सवालों की डोर उलझ जाती है
कहीं न कहीं आज़ भी उस शख्स की बहुत याद आती है।।
हैं बहुत खुद से शिकायते, हर बार ये मन सिसकता है,
वो बंद आंखो के भीतर,आंखो में फिर इक तस्वीर सा दिखता है।।
कुछ थी बातें अनजानी सी
कुछ थी यादें बहुत सुहानी सी
चल...
देख बरसते आंगन को हर बार ये आंखे नम हो जाती हैं
सुलझाते सुलझाते हर बार फिर सवालों की डोर उलझ जाती है
कहीं न कहीं आज़ भी उस शख्स की बहुत याद आती है।।
हैं बहुत खुद से शिकायते, हर बार ये मन सिसकता है,
वो बंद आंखो के भीतर,आंखो में फिर इक तस्वीर सा दिखता है।।
कुछ थी बातें अनजानी सी
कुछ थी यादें बहुत सुहानी सी
चल...