...

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गज़ल 6
तस्नगी दिल की मेरे क्यों मिटाते हो नहीं?
आए हैं हम बज़्म में पर्दा उठाते हो नहीं।

दर्द ए नश्तर के लिए तुम मरहम हो मेरे।
ऐसे गम में भी सनम तरस खाते हो नहीं।

तू जिससे राजी हो दे वता मुझको हबीब।
कीजिए इरशाद कहता हूं बताते हो नहीं।

दीदेजलवा से फरिश्ते हया खाते हैं सब।
वोही जलवे ये सनम क्यों दिखाते हो नहीं?
© abdul qadir