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गज़ल 6
तस्नगी दिल की मेरे क्यों मिटाते हो नहीं?
आए हैं हम बज़्म में पर्दा उठाते हो नहीं।

दर्द ए नश्तर के लिए तुम मरहम हो मेरे।
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