क्या हम अपेक्षा करने लायक हैं ?
दूसरों से जो अपेक्षा करते हैं,
क्या वो खुद उसके लायक है?
खुद के पास एक पैसे की ईमानदारी नहीं
और जिसके सामने करोड़ों है उससे ईमानवारी की अपेक्षा करतें हैं।
घर के दो सदस्यों में प्रेम की भावना नहीं और समाज या संसार को एक करने की अपेक्षा करते हैं।
कभी किसी के हाथों में पत्थर दिखते हैं,
तो कभी किसी के हाथों में तलवार |
हमेशा दूसरों के दमन के बारे में ही सोचते हैं
चाहे तीज हो या त्योहार ।|
कोई कहता हिन्दू राह से भटका है,
तो कोई कहता है मुसल्मान,
पर ज़रा गहराई से देखो तो नज़र आएगा
भटक गया इंसान ।
कहते हैं ईश्वर ने कहा है कि धर्म की रक्षा करो
पर हम तो धर्म का अर्थ ही भूल गए ।
धर्म की रक्षा के खातिर देखो
धर्म के ही अनुकूल गए।
दूसरों की हसी देखकर,
आँखों में आँसू क्यूँ आता है।
दूसरों की तकलीफ में ये दिल आखिर क्यूँ मुस्कुराता है।
दूसरों को आगे बड़ता देख
राहों में कांटे बिछाने वाले,
समाज और देश के विकास को...
क्या वो खुद उसके लायक है?
खुद के पास एक पैसे की ईमानदारी नहीं
और जिसके सामने करोड़ों है उससे ईमानवारी की अपेक्षा करतें हैं।
घर के दो सदस्यों में प्रेम की भावना नहीं और समाज या संसार को एक करने की अपेक्षा करते हैं।
कभी किसी के हाथों में पत्थर दिखते हैं,
तो कभी किसी के हाथों में तलवार |
हमेशा दूसरों के दमन के बारे में ही सोचते हैं
चाहे तीज हो या त्योहार ।|
कोई कहता हिन्दू राह से भटका है,
तो कोई कहता है मुसल्मान,
पर ज़रा गहराई से देखो तो नज़र आएगा
भटक गया इंसान ।
कहते हैं ईश्वर ने कहा है कि धर्म की रक्षा करो
पर हम तो धर्म का अर्थ ही भूल गए ।
धर्म की रक्षा के खातिर देखो
धर्म के ही अनुकूल गए।
दूसरों की हसी देखकर,
आँखों में आँसू क्यूँ आता है।
दूसरों की तकलीफ में ये दिल आखिर क्यूँ मुस्कुराता है।
दूसरों को आगे बड़ता देख
राहों में कांटे बिछाने वाले,
समाज और देश के विकास को...