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शीर्षक- दहेज
शीर्षक- दहेज

दहेज बना है असुर भयंकर,
उजाड़ रहा है, यह लाखों घर।
दौलत की जो भूख बढ़ी है,
फैला रही है यह अपने पर।
बेटी की शादी जब होगी,
जब दोगे सोना - चाँदी,कार और महंगा घर।
गरीब इंसान रोटी- रोटी को मोहताज है,
कैसे बसेगा उसकी बेटी का घर?
महँगे शौक और शान- शौकत से,
उड़ाया जाता है बहुत पैसा,
हर कोई यहाँ अमीर नहीं है, करे जो अमीरों के जैसा।

हो रही बेटियाँ प्रताड़ित ससुराल में,
मार- पीट सहती, रहती बुरे हाल में,
कहाँ जाएँगी यही सोचती,
घिरी रहती चिंता सवाल में,
खा लेती है जहर कभी खुद,
कभी लगा लेती हैं फांसी,
बलि चढ़ जाती है दहेज की,
कभी जला दिया जाता है ,नारी को।

शिक्षित है समाज फिर भी, दहेज की भूख नहीं मिटती है।
शिक्षित, संपन्न लोगों के यहाँ ही, सबसे अधिक दहेज प्रथा देखने मिलती है।
हम सब मिल आवाज उठाए,
दहेज प्रथा बंद करवाए, तभी सार्थक होगा सपना,
बेटी बचाए, बेटी पढ़ाए।
रिया दुबे



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