...

5 views

भीड. में भी तनहा
अपने आशियाने से बाहर देखा,
तो दुनिया में लोग बेशुमार थे |
बाहर के मुकाबले
भीतर हमारे चाहने वाले मुख्तसार थे |
पर जब निकले हम बाहर ,
तो इस जहान का कुछ मुख्तलिफ सा अंदाज़ था

करोड़ो की भीड. में भी मैं तनहा,
न जाने ये कैसे सफर का आगाज़ था |
हमने की सबसे मोहबत,
न थी किसी से अदावत,
फिर भी इस जहान से मिली
हमें जख्म और अकेलेपन की इनायत|
लोगो के चहरे मुस्कुरा रहे थे ,
लेकिन उनकी आंखियों में इज्तिरार था |
बाहरी दुनिया होगी ऐसी
इसका न मुझे जरा सा भी आसार था |
आज भी तनहाइयों में
मैं खुदसे पूँछता हूँ ,
क्या मैं ऐसे ही जहान में जीने का मुन्ताज़ार था||
© VSAK47