...

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तहफ्फुज़
कुदरत का दिया सबसे बड़ा काम नहीं कर पाता आदमी किसी भी एक औरत के लिए।
नहीं दे पाता सुरक्षा पूरी तरह।
कोई ना कोई एक औरत.... नहीं कर पाती सुरक्षित महसूस।
कभी अपने कुटुम्ब की कभी गैर घर की।
'तहफ्फुज़' केवल शब्द नहीं ये तसल्ली की कसौटी है हर औरत के लिए।
दो कदम औरत से आगे चलने का यश पाने वाला आदमी प्रेम में जितने वादे कर ले,जितनी पींगे बढ़ा लेे...नहीं कर पाता पुख्ता अपना जिंदगी भर सुरक्षा देने का वचन।
इज्जत और प्यार में औरत इज्जत को चुनेगी....आदमी के उस हाथ को चुनेगी जिससे हमेशा के लिए तोहफ़ा उसे तहफ्फुज़ का मिले।।

समीक्षा द्विवेदी


© शब्दार्थ📝

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