...

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बिसात
ये काले उजले घेरो में क्या खेल रचाया तुमने हैं
ये पीड़ा के अंधेरे से सूरज को छुपाया तुमने हैं
क्या सोचा था- ये अंधेरा मुझे डूबायेगा?
एक लौ रख दी है सीने में अब वो पथ दिखलायेगा।।

गर्जन करते अबधि को मेरे राहो पे टाल दिया
लो कस्ती रखली मैंने और पतवारों को भी
संभाल लिया।।
वक़्त को उल्टा कर तुम मुझे हराने आये थे
तोड़ कर ये वक़्त का पहिया जीने का हुनर भी जान लिया।।

मायाजाल के फंदों से मुझमें से मैं मारने आये थे
मेरे अंतर्मन की शक्ति ने तुम्हारा हाल भी जान लिया।।

मौत दिखा कर तुमने सोचा था मुझे डराओगे
लो फेक दिया है जिस्म का चादर
मेरी रूह कैसे जलाओगे।।

अब देखो ये खेल क्या खेल रचाया है मैंने
उजले घेरे में सूरज लाक़े दीप जलाया है मैंने।।।
© storyteller