रिश्तेदारों का मेला
रिश्तेदारों का मेला, है बड़ा निराला,
हर त्यौहार पर आते, लेकर अपना थाला।
चाची जी लाती हैं, मिठाई की पोटली,
और खुद खाती हैं, रखकर अलग कटोरी।
मामा जी आते हैं, लंबी-लंबी कहानियां,
और फिर भूल जाते, घर की सब नादानियां।
फूफा जी आते हैं, सारा हाल बताने,
फिर बिन पूछे ही, देते हैं सलाह चलाने।
ताई जी कहती हैं, “कितने बड़े हो गए!”
पर हर बार मिलकर, फिर वही बातें दोहराए।
नानी जी लाती हैं, अचार का बड़ा डिब्बा,
और शिकायत करती हैं, "पानी पी लो थोड़ा!"
दादी जी पूछती हैं, "शादी कब करोगे?"
फिर खुद ही जवाब देतीं, "अब तो कर लो!"
माँ-पापा मुस्कुराते, कुछ कहते नहीं,
पर रिश्तेदारों के जाने पर, चैन से सोते वहीं।
रिश्तेदारों का मेला, है बड़ा निराला,
हंसी-खुशी का पिटारा, पर थोड़ा भारी झमेला।
कभी हंसाते, कभी रुलाते, ये प्यारे रिश्तेदार,
फिर भी इनके बिना, अधूरी है हर बार!