...

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कुछ उथल-पुथल है
कुछ उथल-पुथल है भीतर भी
कुछ उथल-पुथल है बाहर भी
कुछ बूंदें है आँखों में
कुछ बूंदें है आँगन भी
इल्जाम घूम रहे है कुछ
नाज़ायज़ से बेमतलब
बातें है कुछ अनजानी, और
होठ पड़े है कुछ गुमसुम
क्या सच, सच में होता है
क्या वक़्त...