...

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कुछ उथल-पुथल है
कुछ उथल-पुथल है भीतर भी
कुछ उथल-पुथल है बाहर भी
कुछ बूंदें है आँखों में
कुछ बूंदें है आँगन भी
इल्जाम घूम रहे है कुछ
नाज़ायज़ से बेमतलब
बातें है कुछ अनजानी, और
होठ पड़े है कुछ गुमसुम
क्या सच, सच में होता है
क्या वक़्त फैसला करता है
या फिर वो ऊपरवाला
सिर्फ देखता रहता है
कुछ इंतजार है आहट भी
रूठी किस्मत है दामन भी
कुछ नाराज़ी के किस्से है
कुछ मजबूरी के आलम भी
कुछ धागे है उलझे-उलझे
मंजिल कुछ गुमनाम सी है
भीड़ भरी इस दुनिया में
जिंदगी कुछ वीरान सी है
इक छिपा समंदर अंदर भी
इक दरिया होता जाहिर भी
कुछ उथल-पुथल है भीतर भी
कुछ उथल-पुथल है बाहर भी


© ©meenu🌸