...

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कब मुलाक़ात होगी?
कभी दुवा में आते हो|
कभी दुवा होके अजाते हो
कभी बीमारी का धवा बनके आते हो|
कैसे भी हो, हमसे मिलने के लिए ही, तो आते हो||

इतना प्यार हमसे, पता नहीं क्यों करते हो|
ना चाकर भी हमारी यादों में अजाते हो||
तुम रहो, या ना रहो,
हमेंशा मन में रहते हो||

इंतज़ार करते थे, तेरे आने की|
और पूछ ते थे,
तुम्हारी तस्वीर से -- कब आते हो|
इंतज़ार करते थे -- 'वक्त-की-इम्तहांन'
जाने की,
और पूछलेते इम्तेहान से, कब मरते हो?
अचानक मिल गई खबर के तुम आरहे हो|
पर तुम तेर करके ही, रख चुके थे,
हमसे हमेशा केलिए बिछड़के जाने को||

खुश हो गए सुन के,
कि तुम इम्तिहान को मार चुके हो|
अफ़सोस की बात ये है कि,
तुम भी इम्तिहान के सात मर चुके हो|
अब ना हम तुमसे मिल सकते हैं,
ना तुम हम से मिल सकते हो|
आख़िर तुम आना-जाना थो भूलही चुके हो||


© Archana Kuratti
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