...

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ज़िंदगी — तेरी ख़ुद से है जंग…
मुस्करा रही है ज़िंदगी,
बहते हूये पलों के संग…
नाच रही है गा रही है,
बाँट रही है खुशियो के रंग…
आईने में दिखती सूरत,
पहचान कर रही सीरत की…
ख़ुदको मिलने की चाहत में,
ढूँढ रही है अपने ढंग…
मुस्करा रही है ज़िंदगी,
बहते हूये पलों के संग…

समंदर की गहराई को मापा,
समझ ना पई यह पानी गहरा क्यों ?
आसमान में तारोको देखा,
समझ ना पई सितारों का सहारा क्यों ?
बादल बनकर कैसे बरसाते है यह पानी,
जानने को उठ रही है दिल में तरंग
मुस्करा रही है ज़िंदगी,
बहते हूये पलों के संग…

गोरी हो गई या काली हो गई,
यह दुनियाँ प्यारी हो या पैसे वाली हो गई …
लालच के पेड़ो की जड़ें !
यह दुनियाँ बहुत ही मतलब वाली हो गई…
काश! कोई नफ़रत की फसल पे करदे sprey,
तब जाकर ज़िंदगी में उठेगी नयी उमंग…
मुस्करा रही है ज़िंदगी, बहते हूये पलों के संग…

वक़्त का तराज़ू है यहाँ,
लेकिन इंसाफ़ के लिए कोई जगह नहीं !
अमीर और भी अमीर हो रहा,
गरीब को ऊपर लाने की कोई वजह नहीं !
“जिंद” ज़िंदगी है चल इसे जीते है,
किसी और से नहीं तेरी ख़ुद से है जंग…
मुस्करा रही है ज़िंदगी, बहते हूये पलों के संग…



#जलते_अक्षर


© ਜਲਦੇ_ਅੱਖਰ✍🏻