...

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खयाल
कभी ख्यालों की खुशबू महकती थी यूं ही
है देख के नजारों को कलियां बहकती थी यूं ही

जरा सा पर्दा गिरा तो हो गया अंधेरा क्यों
है नींद जागी हुई सी टूटा ख्वाब हमारा क्यों

कभी दरीचो पे शम्मे जो हम जलाते हैं
तो गीत लहजे खयालो मैं गुनगुनाते...