कुछ याद भी है
कुछ याद भी है
क्या तुम्हें, कुछ याद भी है
सतरंगी फ़िज़ाओं संग ज़मीं को पग से नापना,
थाम मेरे बाहों को मुझ में लिपट जाना,
मेरी सांसों का तुझमें ही खो जाना,
आंखों में दूजे के डूब जाना.
क्या तुम्हें, कुछ याद भी है
वक़्त रोक कर शमां जो बांधे थे,
सीने पर जो मेरे सर अपना लगाए थे,
क्या तुम्हें, कुछ याद भी है,
वादे कुछ तुमनें जो किए थे,
सपनें जो संग हमने सजाए थे,
भुला क्या तुम उन्हें भी अब बैठे.
©LivingSpirit
#WritcoAnthology #yaad #waadein
क्या तुम्हें, कुछ याद भी है
सतरंगी फ़िज़ाओं संग ज़मीं को पग से नापना,
थाम मेरे बाहों को मुझ में लिपट जाना,
मेरी सांसों का तुझमें ही खो जाना,
आंखों में दूजे के डूब जाना.
क्या तुम्हें, कुछ याद भी है
वक़्त रोक कर शमां जो बांधे थे,
सीने पर जो मेरे सर अपना लगाए थे,
क्या तुम्हें, कुछ याद भी है,
वादे कुछ तुमनें जो किए थे,
सपनें जो संग हमने सजाए थे,
भुला क्या तुम उन्हें भी अब बैठे.
©LivingSpirit
#WritcoAnthology #yaad #waadein