रहनुमा
चल रहा हूं,
राह पर जिसकी,
दांव पर लगा,
अपनी ज़िंदगी,
क्या इस परवाने की,
तुम शमां हो,
निहार रहा हूं,
एक टक जिसे,
चकोर सा,
क्या तुम ही वो,
चमकता चांद हो,
या मुझे रिझाते,
किसी टूटते हुए,
तारे का गुमां हो,
महफूज़ रख सके,
रास्ते की हर शय,
हर मुश्किल से,
क्या तुम ही ,
वो नेक रहबर,
मेरे रहनुमा हो।
- राजेश वर्मा
© All Rights Reserved
राह पर जिसकी,
दांव पर लगा,
अपनी ज़िंदगी,
क्या इस परवाने की,
तुम शमां हो,
निहार रहा हूं,
एक टक जिसे,
चकोर सा,
क्या तुम ही वो,
चमकता चांद हो,
या मुझे रिझाते,
किसी टूटते हुए,
तारे का गुमां हो,
महफूज़ रख सके,
रास्ते की हर शय,
हर मुश्किल से,
क्या तुम ही ,
वो नेक रहबर,
मेरे रहनुमा हो।
- राजेश वर्मा
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