घुटी सी ज़िंदगी
घुटी सी ज़िंदगी सबकी, ये काला आसमां है
परेशां आदमी ही आदमी से, खामखां है
दिखावे की झलक में हो गए, शामिल सभी जो
नुमाइश झूठ की, भीड़ों में खाली वो शमां है
जरा उस दाग़ को धुल लो, तो बातें साफ़ सुथरी हों
तुम्हारे मन में इज्ज़त का, जो सदियों से जमां है
दिखी औरत कोई सुंदर, तो नजरें झांकती हैं
बदन के काम में खोकर, उसे जो नापती हैं
तुम्हें उस वक्त इज़्जत की, फिक्र क्यों कुछ नहीं होती
ये आंखें उसके चेहरे से, उसे जो आंकती हैं
वो छोटी जात से जो, छूत का बर्ताव करते हो
उसी से मिलके चेहरे पे, खुशी का भाव करते हो
अगर बिस्तर पे सो...
परेशां आदमी ही आदमी से, खामखां है
दिखावे की झलक में हो गए, शामिल सभी जो
नुमाइश झूठ की, भीड़ों में खाली वो शमां है
जरा उस दाग़ को धुल लो, तो बातें साफ़ सुथरी हों
तुम्हारे मन में इज्ज़त का, जो सदियों से जमां है
दिखी औरत कोई सुंदर, तो नजरें झांकती हैं
बदन के काम में खोकर, उसे जो नापती हैं
तुम्हें उस वक्त इज़्जत की, फिक्र क्यों कुछ नहीं होती
ये आंखें उसके चेहरे से, उसे जो आंकती हैं
वो छोटी जात से जो, छूत का बर्ताव करते हो
उसी से मिलके चेहरे पे, खुशी का भाव करते हो
अगर बिस्तर पे सो...