...

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मां की मजबूरी
जब तक नहीं थी
सिर पर कोई जिम्मेदारी
मां बाप की कमाई हुई दौलत से
चलती थी दुनिया हमारी
ना खर्चे का कोई हिसाब था
ना बचाने की कोई तैयारी
अब, जब, सिर पर पड़ी है
तो निकल गई सारी हेकड़ी हमारी

अब हर खर्चा पहाड़ लगता है
कर पाएंगे, या नहीं,
मन में ये शक रहता है
कर भी लिया, तो क्या
आगे चलकर निभा पाएंगे
कहीं, कर्जे के दलदल में हम
फस तो नहीं जाएंगे

बचपन के उस सवाल का
जवाब अब मिला है
जब हम मां से पूछते थे
इस महीने ये चीज़
दिलाने में हर्ज क्या है

मां की मजबूरी अब
समझ में आती है
चंद रुपयों से घर की गाड़ी
जो चलानी पड़ती है

© Pooja Arora

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