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मोहब्बत से नफ़रत तक
#WritcoPoemPrompt22
जाने शहर का कैसा दस्तूर हो गया
अपना जो था पहले दूर हो गया
कोई खोज ख़बर नहीं, लगता है
जैसे हालतों से मजबुर हो गया
वैसे तो चाँद में भी ठहरा दाग
फिर वो इतना क्यों मगरूर हो गया
लिपट गया पावँ में धूल बनकर ऐसे
जैसे लगता है की नूपुर हो गया
ज़ख्म ऐसा लगा दिल पर की
मानो जैसे की नासूर हो गया
तबाह कर बैठा जिंदगी अच्छी भली
अंधा प्यार का सुरूर हो गया
मोहब्बत करने निकला था कभी
पर नफ़रत ही भरपूर हो गया
© sushant kushwaha
जाने शहर का कैसा दस्तूर हो गया
अपना जो था पहले दूर हो गया
कोई खोज ख़बर नहीं, लगता है
जैसे हालतों से मजबुर हो गया
वैसे तो चाँद में भी ठहरा दाग
फिर वो इतना क्यों मगरूर हो गया
लिपट गया पावँ में धूल बनकर ऐसे
जैसे लगता है की नूपुर हो गया
ज़ख्म ऐसा लगा दिल पर की
मानो जैसे की नासूर हो गया
तबाह कर बैठा जिंदगी अच्छी भली
अंधा प्यार का सुरूर हो गया
मोहब्बत करने निकला था कभी
पर नफ़रत ही भरपूर हो गया
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