जीवन भीगा रहा मेरा, गलतियों की बारिश में
चलाता था पतवार मैं, दूर था किनारा
भंवर ललचाती रोज, सुनाती नया अफसाना
जिन ध्वनियों का करता रहा अनुसरण मैं
ना पता था गहराई उनको, ना पता था किनारा
जीवन भीगा रहा मेरा, गलतियों की बारिश में
फिर भी है, हर पल अब, आगे कदम बढ़ाना
लाख लहरों सा उठा मैं, लाख लहरों सा गिरा
लौटा वहीं बार-बार, जहां से मैं चला
भावनाएं आहत थीं, आहत थी विचारधारा
खो चुका था खुद को, खुद को पाने अब चला
गलतियों से डरकर, नहीं मुझको हार मान जाना
शूरवीरों के जैसा, मुझे है खुद अपनी राह बनाना
जीवन भीगा रहा मेरा, गलतियों की बारिश में
फिर भी है, हर पल अब, आगे कदम बढ़ाना
कैसे बैठा रहूं मौन मैं, सागर के किनारे
लहरों के पार जाना मुझे, चाहे सारा जग हारे
बोल मेरे एक दिन, यह तरंगे दोहराएंगी
मेरे पसीनो की बूंदों से, जब यह खुद गीली हो जाएगीं
अंतर्मन की नदी बने, मेरे जीवन का सहारा
गिरे, टकराए, तेज बहे अंतर्ज्ञान की धारा
जीवन पंगु रहा मेरा, बाहरी शोर-शराबे में
फिर भी है, हर पल अब, आगे कदम बढ़ाना
जीवन भीगा रहा मेरा, गलतियों की बारिश में
फिर भी है, हर पल अब, आगे कदम बढ़ाना
नित्य नए स्वर गुंजे, मस्तिष्क बने संगीतशाला
नित्य नए पुष्प खिलें, मस्तिष्क बने पुष्पशाला
हीरे सा तराशूं इसको, हीरे सा चमका दूं
अग्नि में ना पिघले, ऐसा सोना इसे बना दूं
आत्मविश्वास से भरा गीत, जीवन में है अब गाना
भंवरों के जैसे, हर पल के रस का, आनंद है उठाना
जीवन फीका रहा मेरा, प्रकृति के इस बाग में
फिर भी है, एक दिन इसको, गुलाबों सा महकाना
जीवन भीगा रहा मेरा, गलतियों की बारिश में
फिर भी है, हर पल अब, आगे कदम बढ़ाना
image credit: unsplash
© Ashutosh Kumar Upadhyay
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भंवर ललचाती रोज, सुनाती नया अफसाना
जिन ध्वनियों का करता रहा अनुसरण मैं
ना पता था गहराई उनको, ना पता था किनारा
जीवन भीगा रहा मेरा, गलतियों की बारिश में
फिर भी है, हर पल अब, आगे कदम बढ़ाना
लाख लहरों सा उठा मैं, लाख लहरों सा गिरा
लौटा वहीं बार-बार, जहां से मैं चला
भावनाएं आहत थीं, आहत थी विचारधारा
खो चुका था खुद को, खुद को पाने अब चला
गलतियों से डरकर, नहीं मुझको हार मान जाना
शूरवीरों के जैसा, मुझे है खुद अपनी राह बनाना
जीवन भीगा रहा मेरा, गलतियों की बारिश में
फिर भी है, हर पल अब, आगे कदम बढ़ाना
कैसे बैठा रहूं मौन मैं, सागर के किनारे
लहरों के पार जाना मुझे, चाहे सारा जग हारे
बोल मेरे एक दिन, यह तरंगे दोहराएंगी
मेरे पसीनो की बूंदों से, जब यह खुद गीली हो जाएगीं
अंतर्मन की नदी बने, मेरे जीवन का सहारा
गिरे, टकराए, तेज बहे अंतर्ज्ञान की धारा
जीवन पंगु रहा मेरा, बाहरी शोर-शराबे में
फिर भी है, हर पल अब, आगे कदम बढ़ाना
जीवन भीगा रहा मेरा, गलतियों की बारिश में
फिर भी है, हर पल अब, आगे कदम बढ़ाना
नित्य नए स्वर गुंजे, मस्तिष्क बने संगीतशाला
नित्य नए पुष्प खिलें, मस्तिष्क बने पुष्पशाला
हीरे सा तराशूं इसको, हीरे सा चमका दूं
अग्नि में ना पिघले, ऐसा सोना इसे बना दूं
आत्मविश्वास से भरा गीत, जीवन में है अब गाना
भंवरों के जैसे, हर पल के रस का, आनंद है उठाना
जीवन फीका रहा मेरा, प्रकृति के इस बाग में
फिर भी है, एक दिन इसको, गुलाबों सा महकाना
जीवन भीगा रहा मेरा, गलतियों की बारिश में
फिर भी है, हर पल अब, आगे कदम बढ़ाना
image credit: unsplash
© Ashutosh Kumar Upadhyay
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