...

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जीवन भीगा रहा मेरा, गलतियों की बारिश में
चलाता था पतवार मैं, दूर था किनारा
भंवर ललचाती रोज, सुनाती नया अफसाना
जिन ध्वनियों का करता रहा अनुसरण मैं
ना पता था गहराई उनको, ना पता था किनारा
जीवन भीगा रहा मेरा, गलतियों की बारिश में
फिर भी है, हर पल अब, आगे कदम बढ़ाना

लाख लहरों सा उठा मैं, लाख लहरों सा गिरा
लौटा वहीं बार-बार, जहां से मैं चला
भावनाएं आहत थीं, आहत थी विचारधारा
खो चुका था खुद को, खुद को पाने अब चला
गलतियों से डरकर, नहीं मुझको हार मान जाना
शूरवीरों के जैसा, मुझे है खुद अपनी राह बनाना
जीवन भीगा रहा मेरा, गलतियों की बारिश में
फिर भी है, हर पल अब, आगे कदम बढ़ाना

कैसे बैठा रहूं मौन मैं, सागर...