...

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मैं...
"हम" से "मैं" तक का सफ़र
चंद लम्हों में हीं पार कर गए ।
पर "मैं" में, अभीं भीं इतनी ताकत हैं के,
सुनसान सन्नाटों से भरी यात्रा कों भीं
हंसते हुए पार कर जाएंगे ।

सांसों कें जाहां कों
सांसों से सजाने के लिए,
अल्फाज़ों के शहर में
कदम रखना हीं तों,
बेहतर हैं...।

गुलाब ना सहीं पर
गुलाबी शब्दों के महल बनाना तों
आसान होगा ना ...!

जख्मों कों दफ़नाने के लिए
लफ़्ज़ों का रास्ता,
सुखमय हैं औऱ शांतिपूर्ण भीं ...

© it's me sangita 💙