बचपन मेरा दर्पण,,,,
जिंदगी मैं क्या किया ,
दोस्ती की निभाना पड़ा
हसी खिली तो रूलाना पड़ा ,
देखते-देखते आज बड़े हो गए
जिंदगी अपने तरीके से जिने लगे।
शरारती मन को जिना था ,
इसीलिए रुल तोड़दिया ।
पाठशाला में पढ़ा हर पन्ना,
आज काम आने लगा।
ठहरे पानी को बहना था ,
इसीलिए हाथ छोड़ दिया ।
जिंदगी में कुछ करना था ,
पर किस्मत बदल गई ।
हाथ पकड़कर चलते थे वो कदम ,
आज मंजिल खोज रहे ।
गुस्सा करो तो...
दोस्ती की निभाना पड़ा
हसी खिली तो रूलाना पड़ा ,
देखते-देखते आज बड़े हो गए
जिंदगी अपने तरीके से जिने लगे।
शरारती मन को जिना था ,
इसीलिए रुल तोड़दिया ।
पाठशाला में पढ़ा हर पन्ना,
आज काम आने लगा।
ठहरे पानी को बहना था ,
इसीलिए हाथ छोड़ दिया ।
जिंदगी में कुछ करना था ,
पर किस्मत बदल गई ।
हाथ पकड़कर चलते थे वो कदम ,
आज मंजिल खोज रहे ।
गुस्सा करो तो...