...

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सुनहरी दस्तक
सुकोमल हृदय, सदा नवल सी धूप हूं,
तो क्या हुआ थोड़ी ज्यादा बेवकूफ़ हूं,
प्यार अब भी उतना ही दिल से करती हूं,
बस नयनों की जगह वाणी के तीर चलाती हूं!

हां,थोड़ी अल्हड़ हूं,पर प्यार में तेरे ख़ुदगर्ज़ हूं,
तेरी शाम ओ सुबह की बेजान सी रंगत हूं,
पुकार ले नाम मेरा जो हर सूं मेरे प्यार,
मैं तेरे इस जहान की सुनहरी सी दस्तक हूं!

तेरे दिल के द्वार की इकलौती ज़ंजीर हूं,
खुले जो मेरे ही प्यार भरे अल्फाज़ों से,
ऐसी रक्स करती तिलस्मी तहरीर हूं,
हां, मैं तेरे इश्क़ की तर्ज़ पर बनती तस्वीर हूं...!


© Tarana 🎶