...

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अभी रास्तों पे....
गुज़र जाऐ जो वो पहरा कहां हूं
अभी रास्तो पे ठहरा कहां हूं
अभी थोड़ी गर्दिश़ ,अभी थोड़ी मुश्किल़
अभी चल ही रहा हूं ठहरा कहां हूं
रु़ख हवाओं का मुझको ये मोड़े भी तो कैसे
कुछ उम्मीदे हैं दिल को हम छोड़े भी तो कैसे
ज़ेहन में‌ लेकर इन्हें जी रहा हूं
अब इनका ही तो हूं मैं मेरा कहां हूं
एक सुरूऱ सा अलग है शायद अकेलेपन में
हूं ज़माने से रूख्सत़ अपने ही मन में
बस छूकर निकलना तुम मेरे मन को
अब प़नाह दूं मैं तुमको उतना .....गहरा कहां हूं