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sahara
पलके हैं भरी भारी सी
के मन सहमा-सहमा सा है,
आंखें हैं डरी डरी सी
के दृश्यों से मन भरा-भरा सा है,
पर हरियाली इन नैनन को शांत चित्त़ सा कर जाती
और चिड़ियों की चहचहाहट, मन को बांसुरी सी भाती
पर एकांत में मन लग सा जाता है
जैसे बिन समंदर किनारा के ना कुछ कह पाता है।
© divu
के मन सहमा-सहमा सा है,
आंखें हैं डरी डरी सी
के दृश्यों से मन भरा-भरा सा है,
पर हरियाली इन नैनन को शांत चित्त़ सा कर जाती
और चिड़ियों की चहचहाहट, मन को बांसुरी सी भाती
पर एकांत में मन लग सा जाता है
जैसे बिन समंदर किनारा के ना कुछ कह पाता है।
© divu
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