मैं सोच रही हूं
मैं सोच रही हूं:- मैं सोच रही हूं मां है कैसी? भोली सी सूरत तेरी, आंखों में छिपा प्यार तेरा। एक खुबसूरत सा दिल है तेरा। जो अपने बच्चों के लिए धड़कता हमेशा। जब भी तेरे बच्चों का दिल कोई दुखाता। दर्द तो तुझे भी हर बार होता। फिर भी तू चुप रहती, चुप रहकर सब कुछ सहती। ना जाने क्यों इन्सान खुद को ही खुदा समझ बैठता? कभी मां के इशारे को तू समझता नहीं। इसलिए अत्याचारों का इतनी आसानी से अन्त होता नहीं। जब जब पापों का घड़ा है भरता। तब तब तू काली का रूप धारण है करती।(डॉ. श्वेता सिंह)
Related Stories