!...कफस के खून को इंकलाब लिखता हूं...!
कैद परिंदो पे मैं तो कलाम लिखता हूं
कफस के खून को इंकलाब लिखता हूं
हरम की दौलत से पीते है मय को बद्दूह
मैं भरी महफिल में तुम्हें गद्दार लिखता हूं
बाग ए गुल पे गिराते है जो...
कफस के खून को इंकलाब लिखता हूं
हरम की दौलत से पीते है मय को बद्दूह
मैं भरी महफिल में तुम्हें गद्दार लिखता हूं
बाग ए गुल पे गिराते है जो...