...

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!...दुआ ए हक...!

उठ ऐ मर्दे हक पूरी दुनिया को जगा दे
गफलत में डूबी हुई बस्ती को मिटा दे

मूता में टूटी हुई तलवार का है तू वारिश
खालिद के लश्कर को तू फिर से उठा दे

ये उजड़ी हुई बस्ती पर हंसते हुए काफ़िर
सच्चों के लिए बच्चो को सलाऊद्दीन बना दे

ये ढोंग ये छल ये रंग ओ रूप के शैतां
कोई जा के फिर से गजनवी को बुला दे

तख्त पर फिरौन है सामने मेरे लश्कर
ए खुदा मुझको तू वक्त का गाजी बना दे

—–12114