पहचान ...
न मैं तुम्हें पा सकीं
न मैं तुमसे
कोई रिश्ता निभा सकीं
टूटते तारों का
काफी शौक था तुम्हें
बस कभी उनमें
तुम्हें मांग नहीं सकीं
जज़्बात ज़िन्दगी सब रख दीं
उस स्याही में
बिखरीं रहीं तुम्हारी हर ग़ज़ल
बस कभी उन ग़जलों में
तुम्हारा नाम समेट न सकीं
ऐसा नहीं है की
कोई फ़िक्र नहीं है
ऐसा नहीं है की
कोई मोहब्बत नहीं है
बस कभी...
न मैं तुमसे
कोई रिश्ता निभा सकीं
टूटते तारों का
काफी शौक था तुम्हें
बस कभी उनमें
तुम्हें मांग नहीं सकीं
जज़्बात ज़िन्दगी सब रख दीं
उस स्याही में
बिखरीं रहीं तुम्हारी हर ग़ज़ल
बस कभी उन ग़जलों में
तुम्हारा नाम समेट न सकीं
ऐसा नहीं है की
कोई फ़िक्र नहीं है
ऐसा नहीं है की
कोई मोहब्बत नहीं है
बस कभी...