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सम्मान की उछलकूद
रामकृष्ण परमहंस को उनका एक शिष्य कहने लगा, मैं आपका गुणगान करता हूं, आपकी प्रसिद्धि के बारे में आपको बताता हूं,और आप कोई प्रतिक्रिया ही नहीं देते, शांत बैठे रहते हैं, रामकृष्ण कहने लगे, तू चाहता मैं दूसरों की प्रतिक्रियाओं से अपना जीवन जीऊं लेकिन ऐसा न हो सकेगा,फिर कल तू मेरी बुराई के किस्से मुझे सुनाएगा, अगर मैं अभी बड़ाई सुनकर अति प्रसन्न हो जाऊंगा तो कल बुराई से निश्चित ही तंग हो जाऊंगा, इसलिए शांत रहता हूं, और ऐसे सुनता हूं जैसे कुछ हुआ ही नहीं! लाओत्से कहता है–अगर सम्मान मिला हो तो स्वीकार करना ही मत, क्योंकि अपमान भी रास्ते में आ ही रहा होगा ||
© ◆Mr Strength