मैं शायर हूं
जाने कब हवा ये मुझको बिखरा दे फिज़ाओं में
पहनी ज़ंजीर कागज़ की एहतियातन मैंने पांवों में
तड़प रहा है बादल भी तड़प रहा है सावन भी
खेतों को भी नींद न आई जो छूट गए हैं गांवों में
बुझाए...
पहनी ज़ंजीर कागज़ की एहतियातन मैंने पांवों में
तड़प रहा है बादल भी तड़प रहा है सावन भी
खेतों को भी नींद न आई जो छूट गए हैं गांवों में
बुझाए...