...

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fursaton se tere gham milte Hain...
फुर्सतों से ही अब तो कम मिलते हैं,
तेरी राहों से लौट ते क़दम मिलते हैं,

हर सांस में याद करते थे कभी,
अब तो दूर से भी कहाँ सलाम मिलते हैं,

एक दौर गुज़र गया था तुम्हे मानाने में,
अब हम नाराज़ हैं तो नाराज़ ही मिलते हैं,

एक फूल बनाया था महकता हुआ जिसे,
सुना है वो किसी और के गुलदस्ते में खिलते हैं,

क्या सुनाए किस्से बेवफाई के उन्हें,
अब तो अपना ही गिरेबां सिलते मिलते हैं,

याद तो आ ही जाते हे वो भूलने वाला "जावेद"
बस आज कल ऐसे जैसे गाजर के हलवे में पड़े बाल मिलते हे....
© y2j