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सङक सीधी है
#सड़क
आधा सड़क सरकार का,
आधा सड़क निर्माणकार का;
आधा सड़क बेघर यार का,
सुझाता नही आर-पार का।
सीधा सङक जा रही
नागिन सा बलखा रही
कितने घरौंदों को लपेटेगी यह
नदी सी जमीं को काटे जा रही।
उपजाऊ भूमि भी जा रही
धन की बारिश हो रही
हर वो शख्स बहुत खुश है
जिसकी जमीं सङक खा रही।
विकास हर तरफ हो रहा
गरीब धनवान हो रहा
भोले मानस तुझे क्या पता?
तेरे ही धन से सब हो रहा।
© Rakesh Kushwaha Rahi
आधा सड़क सरकार का,
आधा सड़क निर्माणकार का;
आधा सड़क बेघर यार का,
सुझाता नही आर-पार का।
सीधा सङक जा रही
नागिन सा बलखा रही
कितने घरौंदों को लपेटेगी यह
नदी सी जमीं को काटे जा रही।
उपजाऊ भूमि भी जा रही
धन की बारिश हो रही
हर वो शख्स बहुत खुश है
जिसकी जमीं सङक खा रही।
विकास हर तरफ हो रहा
गरीब धनवान हो रहा
भोले मानस तुझे क्या पता?
तेरे ही धन से सब हो रहा।
© Rakesh Kushwaha Rahi
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