...

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तुम कौन हो ?
तुम निकट होती तो तुम्हें बताता की कारण तुम हो मेरी व्याकुलता और मुस्कुराने का,
क्या करूं, क्या नहीं, क्या ये वक्त है इस द्वंद में होने का?

खुशियों का मेरी तुम अंत हो, आरंभ हो,
कविताओं का मेरी केंद्र हो, प्रारंभ हो ।

मेरे मुख का तेज हो, मेरी आंखो का पानी भी,
तुम रचनाकार हो, तुम कहानी भी।
मेरे संकल्प की दृढ़ता हो , लक्ष्य हो, शिखर हो,
निश्चय हो, प्रयास हो ,असर हो ।

मेरे आकाश का आदित्य हो,
सागर का संगीत भी, सौम्यता का नृत्य हो ।

तुमको मैंने सृष्टि माना है,
तुमको ही माना दृष्टि है ।

दूर ही कहा थे की अब हासिल हो जाओगे,
हर क्षण तुम्हे निहारा है, नेत्रों से दूर कैसे हो जाओगे ?

बेचैनी को ढक लेती है ये स्याही एक छत बनकर,
जीवित करती है अनुभूति तुम्हारी ये खत बनकर।

सौंदर्य हो, रूप भी और एक विचार हो,
शबनम हो, पुष्पों का खिलना भी और प्यार हो ।

ब्रह्म की ऊर्जा हो, रात्रि का मौन हो,
तुम कण - कण हो, तुम हर क्षण हो।

मुझसे पूछते थे लोग की तुम कौन हो ?


© Swarnim Anand