बचपन के वह क्या दिन थे...!
बचपन के वह क्या दिन थे, एक समोसा और खाने वाले तीन थे,
ना जातपात ना रिश्तों का बंधन था, जब दोस्त ही कीमती धन थे, बचपन के वह क्या दिन थे।।
दिन भर यारों के संग भटकना,
एक रुपए में सायकल लेकर दिन भर रगड़ना,
ना डर होता मां बाबूजी के मार का,
ना ख्वाहिश होता किसी लड़की के प्यार...
ना जातपात ना रिश्तों का बंधन था, जब दोस्त ही कीमती धन थे, बचपन के वह क्या दिन थे।।
दिन भर यारों के संग भटकना,
एक रुपए में सायकल लेकर दिन भर रगड़ना,
ना डर होता मां बाबूजी के मार का,
ना ख्वाहिश होता किसी लड़की के प्यार...