...

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क्या हो तुम
क्या सुबह क्या शाम मेरी जिंदगी का हर लम्हा तुम्हारे नाम
जब कभी परेशान होती हूं मैं उस पल
को खुशियों से भर देते हो तुम मानो जादू की छड़ी हो
तुम
इस निर्जीव शरीर के प्राण हो तुम
मेरी कलम की स्याही के पहले शब्द का आरंभ हो तुम
मेरी कलम से लिखे वो प्यार भरे अल्फाज हो तुम
अपने कलम से पन्नों पर ता उम्र लिखती रहूं वो एहसास हो तुम
चिलचिलाती धूप गहन पेड़ की छाव हो तुम
मेरे ख्वाबगाह का सन्नाटा और रात भर जागती में और बालकनी की खामोशियां हो तुम
कुर्सी पर बैठी में
सर्द हवाओं में चांद
चांद को देखती में
कपोलों से गिरते आंसू
आंसू के बीच सिसकियां
सिसकियों के बीच सन्नाटा
सन्नाटे के बीच में और आपकी यादें
तुम दिल हो जान मेरा हसीन ख्वाब हो
तुम दर्द भी दवा भी मेरे मर्ज की हवा भी
मन हो सम्मान हो तुम मेरा अभिमान हो
तुम मेरे यौवन का सोलह श्रृंगार हो
तुमको कितना भी बयां करूं फिर भी बयां ना कर पाऊं वो एहसास हो तुम।।
© Mamta