...

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बचपन का चश्म
बचपन का चश्म लिये
हम..गलियों में खेला करते हैं
कल देखेंगे क्या होगी जवानी
आज गुनगुनी धूप से ही..इश्क़ किया करते हैं

कल न यह दिन होंगे न यह मेले
आज पापा के काँधे पर..नगर घूम आया करते हैं
खिलौनें तो जागीर हैं हमारी
जो मिल जाये रेज़गारी..हम पूरा शहर ले आया करते हैं

माँ कभी डाँटती है कभी जताती लाड़
उसकी हर बात पे हम..जी भर इठलाया करते हैं
जो ढूँढे हमें कोई गोपियाँ प्यारी
हम..आँचल में छुप जाया करते हैं

बदलेंगे ढंग बदलेंगे ज़ायके
आज उँगलियों से..जी भर स्वाद लिया करते हैं
कल लिख जायेगी तक़दीर क़लम से
आज जी भर लिख लिख के..मिटाया करते हैं