...

11 views

तलाश
वह धीरे-से पलकें उठाकर गिराना
है प्यार नहीं तो बोलो और क्या है?

कभी नजरें चुराना व टकटकी लगाना
इकरार नहीं तो बोलो और क्या है?

वो छुप-छुप के देखे अनदेखा बहाना
इजहार नहीं तो बोलो और क्या है?

हर कातिल अदा पे न हंसी का ठिकाना
दिल से वार नहीं तो बोलो और क्या है?

पल-पल मेरी बातों में बेरुखी दिखाना
कुछ और नहीं तो बोलो और क्या है?




© शैलेंद्र मिश्र 'शाश्वत' ०९/०७/२००५