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तलाश
वह धीरे-से पलकें उठाकर गिराना
है प्यार नहीं तो बोलो और क्या है?
कभी नजरें चुराना व टकटकी लगाना
इकरार नहीं तो बोलो और क्या है?
वो छुप-छुप के देखे अनदेखा बहाना
इजहार नहीं तो बोलो और क्या है?
हर कातिल अदा पे न हंसी का ठिकाना
दिल से वार नहीं तो बोलो और क्या है?
पल-पल मेरी बातों में बेरुखी दिखाना
कुछ और नहीं तो बोलो और क्या है?
© शैलेंद्र मिश्र 'शाश्वत' ०९/०७/२००५
है प्यार नहीं तो बोलो और क्या है?
कभी नजरें चुराना व टकटकी लगाना
इकरार नहीं तो बोलो और क्या है?
वो छुप-छुप के देखे अनदेखा बहाना
इजहार नहीं तो बोलो और क्या है?
हर कातिल अदा पे न हंसी का ठिकाना
दिल से वार नहीं तो बोलो और क्या है?
पल-पल मेरी बातों में बेरुखी दिखाना
कुछ और नहीं तो बोलो और क्या है?
© शैलेंद्र मिश्र 'शाश्वत' ०९/०७/२००५
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