स्त्री एक काव्य
लेकर जन्म एक स्त्री की देह में,
जब काव्य जन्म लेता है,
उस काव्य को ना जाने खुद को,
कितने रिश्तों के मोतियों में पिरोना होता है..!
देह स्त्री की जन्म लेती है जब,
एक स्त्री की देह से,
तो बंध जाती है दोनों स्त्रियां,
बंधन में प्रेम और स्नेह के...!
बनकर बेटी जब एक स्त्री आती है,
पुरुष के जीवन में,
तो करती है पावन पिता पुत्री के नाते को,
प्रेम और विश्वास के पूजन में...!
होती है जब स्त्री एक पुरुष संग,
बहन भाई के नित नाते में,
बांध कर कलाई में धागा प्रेम का,
पाती है प्रेम भाई का तोहफे...
जब काव्य जन्म लेता है,
उस काव्य को ना जाने खुद को,
कितने रिश्तों के मोतियों में पिरोना होता है..!
देह स्त्री की जन्म लेती है जब,
एक स्त्री की देह से,
तो बंध जाती है दोनों स्त्रियां,
बंधन में प्रेम और स्नेह के...!
बनकर बेटी जब एक स्त्री आती है,
पुरुष के जीवन में,
तो करती है पावन पिता पुत्री के नाते को,
प्रेम और विश्वास के पूजन में...!
होती है जब स्त्री एक पुरुष संग,
बहन भाई के नित नाते में,
बांध कर कलाई में धागा प्रेम का,
पाती है प्रेम भाई का तोहफे...