...

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मोक्ष

न जाने कल क्यों एक
जानी पहचानी सी आवाज़ आई
पीछे मुड़कर देखा तो
सिर्फ खाई ही नज़र आई

अब सब लोग लगते है अजनबी
और अनजान हर जगह
न जाने क्यों ये बेबस बादल
बरसे मुझ पर ही
हर पल हर बकत और हर दफा

आज फिर से खो गया हूँ
नहीं पता की मैं हूँ कहा
जाना चाहता हूँ बहा
जिस जगह टुटा हो हर कांच ,
हर शख्स यूँ ही बेबजह

सोचता हूँ थोड़ी सी
कलम ही घुमाई जाएँ
भुलाया न जा रहा जो शख्स
क्यों न उसी के बारे मैं लिखा जाएँ

हे प्रभु
मैं चीखता रहा पर तुझ तक
आवाज़ पहुँच न पाइ
तुझे मेरी खबर न मिली
और मुझे भी किसी की याद न आई
देख तेरे जाने के बाद
मेरी उस अँधेरी रात
की आज तक सुबह ही न हो पाई

कल न चाहकर भी
तेरे दिए उस कोरे कागज़ को
भर ही दिया
मेरी कलम के न न करते हुए
भी उसे चंद अल्फाजो से दर बदर कर HI दिया
पर पता नहीं क्यों उस कागज़
ने
आज सुबह अपना सब कुछ खो दिया


बो भगवान् को प्यारा हो गया
मेरी बो कलम उसका हत्यारा हो गया
भुलाया न जा रहा जो मंजर बह
उसी का नज़ारा हो गया
पता नहीं क्यों बही कागज
मेरी उस अंधेरी रात की सुबह का नज़ारा हो गया

मोक्ष



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© Anurag Thakur